Monday 12 October 2015

वह भी मेरे घर की माटी , यह भी मेरे घर की माटी- श्वेता


भारत से लौटकर-----विश्व हिंदी सम्मेलन और भारत यात्रा से लौटकर भारत और फीजी की अभिन्नता को रेखांकित करते हुए हिदी अध्यापिका श्वेता ने अपने अनुभवों के आधार पर दिल को छूने वाली यह कविता लिखी
वह भी मेरे घर की माटी , यह भी मेरे घर की माटी
बादलो मे गुमसुम बैठी मै



मोती अपने छुपाती मैं
याद आती रही मुझको
मेरे अपने घर की माटी
स्वर्ग है मेरा देश फीजी
सुन फूली नहीं समाती मै
हल्की मुस्कान आ ही गई
वहां पर भी मेरे घर की माटी
कदम रखा भारत मे जब
हवाओ की लहर ऐसी आई
देख रही थी इधर उधर मैं
क्या यही है मेरे घर की माटी
सम्मान आशीर्वाद का सेज सजा था
परायों मे भी अपनापन था
एक सवाल पर नैना बरसे
क्या यही है तुम्हारे घर की माटी
रामायण गीता चाहे पुराण
संग संस्कार भी लाए थे
कौन जाने हर ग्रंथ मे
छुप के बैठी.. मेरे घर की माटी
रंगों मे उल्लास जगा था
राम कृष्ण से स्पर्श हुआ था
हर गली और हर राह पर
कहीं ना कहीं मेरे घर की माटी
हंसता मुस्कराता हर गलियों मे

सरयू , यमुना की पूजा मैं
दूर सही पर रेवा नदी से
पवित्र हुई मेरे घर की माटी
कदम वापस लौट आए
खुशी सम्मान ले
अब मुस्कराती यही कहती -फिरती
वह भी मेरे घर की माटी - यह भी मेरे घर की माटी
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