Sunday 7 February 2016






नरेन्द्र कोहली के गीता पर आधारित उपन्यास ‘ शरणम ‘ का फीजी में लोकार्पण
प्रख्यात लेखक नरेन्द्र कोहली के गीता पर आधारित उपन्यास शरणम का लोकार्पण दिनांक 7 जनवरी , 2016 को फीजी की राजधानी सुवा में हिदू सोसायटी द्वारा हिंदू सोसायटी सभागार में संपन्न हुआ। लोकार्पण में साउथ पैसिफिक विश्वविद्यालय की श्रीमती इंदु चन्द्रा, भारतीय उच्चायोग में द्वतीय सचिव अनिल शर्मा , हिदी लेखक संघ , फीजी के श्री जैनेन प्रसाद, फीजी नेशनल युनिवर्सटी में फिल्म स्ट़डीज के प्रों. दिवाकर फीजी सेवाश्रम संघ के अध्यक्ष श्री बच्चू भाई पटेल, गुजराती समाज के मनहर नारसी उपस्थित थे। इसके अतिरिक्त आर्ट ऑफ लिविंग , ब्रह्मा कुमारी व अन्य भारतीय संस्थाओं के सदस्य भी कार्यक्रम में उपस्थित थे।
कार्यक्रम में बोलते हुए श्री इंदु चंद्रा ने पुस्तक की भाषा की सराहना की । उन्होंने कहा की भाषा की प्रौढ़ता, प्रांजलता विषय और चरित्रों के अनुकूल है। उन्होंने बताया की पात्रों का चरित्र चित्रण भी रोचक है और धृतराष्ट्र व गांधारी आदि का चरित्र बहुत सजीव व दिलचस्प बन पढ़े हैं । उन्होंने पुस्तक मे से कुछ अंशो को पढ़ कर बताया कि किस प्रकार पुस्तक में गीता की मौलिक व्याख्या की गई है हिंदी लेखक संघ ,फीजी के श्री जैनेन प्रसाद ने नरेन्द्र कोहली के व्यक्तित्व और लेखन के बारे में बताया । एक हास्य – व्यंग्य कवि और लेखक होने के नाते उन्हें कोहली जी का व्यंग्यकार रूप विशेष रूप से धृतराष्ट्र से संबंधित संवाद बहुत रोचक लगे ।
श्रोताओं को उपन्यास के संबंध में जानकारी देते हुए बताया गया कि इसमें मुख्य पात्र धृतराष्ट्र और संजय के संवाद तो है पर उपन्यास का ताना बाना खड़ा करने के लिए इस प्रकार के अन्य भी युग्म या समूह है जो कृष्ण - अर्जुन के संवाद पर व तात्कालिक परिस्थितियों, घटनाओं, व्यक्तियो पर विचार करते हैं। इसमें विदुर उनकी पत्नी परासांबी व कुंती हैं। गाधारी व उनकी बहुएं हैं। वासुदेव व देवकी हैं । उद्धव व रूक्मणि भी है। इस प्रकार गीता का विवेचन विभिन्न दृष्टिकोणों से किया गया है। साथ ही पाठ को सरस बनाने और सैंद्धांतिकी को रसपूर्ण और ग्राह्य बनाने के लिए केनोनपनिषद और कठोपनिषद आदि से कथाएं ली गई हैं और महाभारत से भी कई दृष्टातों को प्रस्तुत किया है। कुल मिला कर प्रयास गीता के मूल तत्वो से समझौता किए बिना उसे रसपूर्ण , सरल और सुग्राह्य बनाने पर है।

भारतीय उच्चायोग में द्वितीय सचिव ( हिंदी एवं संस्कृति) अनिल शर्मा ‘ जोशी’ ने श्रोताओं को नरेन्द्र कोहली जी के रामायण , महाभारत और विवेकानंद के जीवन के व्याख्याकार और आधुनिक संदर्भों में पुन : प्रस्तुति के बारे में बताया ।
उन्होंने यह भी बताया कि इस उपन्यास के माध्यम से कोहली जी ने भारतीय समाज में वीरता, संघर्ष और प्रतिरोध का दर्शन गीता के संदर्भ में भी प्रतिपादित किया है । उपन्यास में नरेन्द्र कोहली भारत के क्षात्रधर्म का भी आह्वान करते हैं। उन्होंने हिंदी साहित्य में आजादी के बाद महाभारत पर लिखे महत्वपूर्ण काव्य नाटक अंधायुग का उल्लेख किया , जो युद्द के पश्चात हुए विध्वंस और शांति की बात करता है। उन्होंने कहा कि अहिसा हमारे देश की नीति का अंग है. स्वतंत्रता आंदोलन के समय भी अहिंसा पर बहुत बल दिया गया । पर नरेन्द्र कोहली का नैरेटिव और डिस्कोर्स अलग है। उनका कृष्ण कहता है ‘ जो देश , राष्ट्र और समाज अधर्मियों से लड़ने और मरने से घबराते है; उनसे समझौते करते है, वे ही अपमानजनक और पतित जीवन व्यतीत करते हैं। दास बनकर जी लेते हैं; किंतु अपने सम्मान के लिए लड़ कर मर नहीं सकते । ‘ उनकी व्याख्या सरल है- धर्म की भूमि पर खड़े होने वाले व्यक्ति के लिए कोई अपना पराया नहीं होता , कोई रक्त सबध नहीं होता , कोई सांसारिक सबध नहीं होता । यहां या तो धर्म है या अधर्म। इस मामले में गीता धर्म के लिए प्राण प्रस्तुत करने का, वीरता का आह्वान करती है और अर्जुन को शारिरिक , मानसिक, आत्मिक, मनोवैज्ञानिक रूप से इसके लिए तैयार करती है। नरेन्द्र कोहली का नैरेटिव है कि वे किसी भी देश और जाति के लिए वीरता, बलिदान और युद्ध अनिवार्य हैं। यह वह परंपरा है जो चाणक्य, चन्द्रगुप्त से शिवाजी और राणा प्रताप तक आती है । जो उनकी वीरता, धर्मनिष्ठा पर गर्व का अनुभव करती है , ग्लानि का नहीं। जो अहिंसा और त्याग की परंपरा के साथ दयानंद, विवेकानंद, सावरकर भगतसिंह और सुभाष की परंपरा को भी भारत की गौरवशाली परंपरा मानती है । जो ना ‘दैन्यं ना पलायनं’ पर जोर देती है.। जो मानव जीवन मूल्य को उसका एकांतिक रूप से मूल्याकन नही करती अपितु इतिहास ,मूल्यवोध और धर्म के बरक्स उसको प्रस्तुत करती है और देश, जाति और व्यक्ति को अहिंसा , सहिष्णुता ही नही अपितु जरूरत पढ़ने पर न्याय और धर्म के पक्ष में वीरता, प्रतिरोध, संघर्ष , युद्द का भी आह्वान करती है। उनकी व्याख्या अत्यंत प्रासांगिक है।
कार्यक्रम के पश्चात प्रश्नोतर भी हुए । बहुत से लोगों ने पुस्तक को खरीदने में भी दिलचस्पी दिखाई । आमंत्रित अतिथियों के धन्यवाद से कार्यक्रम समाप्त हुआ।


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